07-03-93  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

होली मनाना अर्थात् हाइएस्ट और होलिएस्ट बनना

आज बापदादा अपने सर्व हाइएस्ट और होलीएस्ट बच्चों को देख रहे हैं। सभी बच्चे इस बेहद के ड्रामा के अन्दर वा सृष्टि-चक्र के अन्दर सबसे हाइएस्ट भी हो और सबसे ज्यादा होलीएस्ट भी हो। आदि से अब संगम समय तक देखो कि आप आत्माओं से कोई हाइएस्ट श्रेष्ठ बना है? जितना आप श्रेष्ठ स्थिति को, श्रेष्ठ पद को प्राप्त करते हो इतना और कोई भी आत्मायें, चाहे धर्म-पितायें हैं, चाहे महान आत्मायें हैं-कोई भी इतना श्रेष्ठ नहीं रहे। क्योंकि आप ऊंचे ते ऊंचे भगवान द्वारा डायरेक्ट पालना, पढ़ाई और श्रेष्ठ जीवन की श्रीमत लेने वाली आत्मायें हो। जानते हो ना अपने को? अपने अनादि काल को देखो-अनादि काल में भी परमधाम में बाप के समीप रहने वाली हो। अपना स्थान याद है ना? तो अनादि काल में भी हाइएस्ट हो, समीप, साथ हो और आदिकाल में भी सृष्टि-चक्र के सतयुग काल में देव-पद प्राप्त करने वाली आत्मायें हो। देव आत्माओं का समय ‘आदिकाल’ भी सर्वश्रेष्ठ है और साकार मनुष्य जीवन में सर्व प्राप्ति सम्पन्न, श्रेष्ठ हो। सृष्टि-चक्र के अन्दर ये देव पद अर्थात् देवता जीवन ही ऐसी जीवन है जहाँ तन, मन, धन, जन-चारों ही प्रकार की सर्व प्राप्तियां प्राप्त हैं। अपनी दैवी जीवन याद है? कि भूल गये हो? अनादि काल भी याद आ गया, आदि काल भी याद आ गया! अच्छी तरह से याद करो। तो दोनों समय में हाइएस्ट हो ना!

उसके बाद मध्य काल में आओ। तो द्वापर में आप आत्माओं के जड़ चित्र बनते हैं अर्थात् पूज्य आत्मायें बनते हैं। पूज्य में भी देखो-सबसे विधिपूर्वक पूजा देव आत्माओं की होती है। आप सबके मन्दिर बने हैं। डबल विदेशियों के मन्दिर बने हुए हैं? कि सिर्फ भारतवासियों के बनते हैं? बने हुए हैं ना! जैसे देव आत्माओं की पूजा होती है ऐसे और किसी आत्माओं की पूजा नहीं होती। कोई महात्मा वगैरह को मन्दिर में बिठा भी देते हैं, लेकिन ऐसे भावना और विधिपूर्वक हर कर्म की पूजा हो-ऐसी पूजा नहीं होती। तो मध्य काल में भी पूज्य रूप में श्रेष्ठ हो, हाइएस्ट हो। अब अन्त में आओ-अब संगमयुग पर भी ऊंचे ते ऊंचे ब्राह्मण आत्मायें ‘ब्राह्मण सो फरिश्ता’ आत्मायें बनते हो। तो अनादि, आदि, मध्य और अन्त-हाइएस्ट हो गये ना। है इतना नशा? रूहानी नशा है ना! अभिमान नहीं लेकिन स्वमान है, स्वमान का नशा है। स्व अर्थात् आत्मा का, श्रेष्ठ आत्मा का रूहानी नशा है। तो सारे चक्र में हाइएस्ट भी हो और साथ-साथ होलीएस्ट भी हो। चाहे और आत्मायें भी होली अर्थात् पवित्र बनती हैं लेकिन आपकी वर्तमान समय की पवित्रता और फिर देवता जीवन की पवित्रता सभी से श्रेष्ठ और न्यारी है। इस समय भी सम्पूर्ण पवित्र अर्थात् होली बनते हो।

सम्पूर्ण पवित्रता की परिभाषा बहुत श्रेष्ठ है और सहज भी है। सम्पूर्ण पवित्रता का अर्थ ही है-स्वप्न-मात्र भी अपवित्रता मन और बुद्धि को टच नहीं करे। इसी को ही कहा जाता है सच्चे वैष्णव। चाहे अभी नम्बरवार पुरुषार्थी हो लेकिन पुरूषार्थ का लक्ष्य सम्पूर्ण पवित्रता का ही है। और सहज पवित्रता को धारण करने वाली आत्मायें हो। सहज क्यों है? क्योंकि हिम्मत बच्चों की और मदद सर्वशक्तिवान बाप की। इसलिए मुश्किल वा असम्भव भी सम्भव हो गया है और नम्बरवार हो रहा है। तो होली अर्थात् पवित्रता की भी श्रेष्ठ स्थिति का अनुभव आप ब्राह्मण आत्माओं को है। सहज लगती है या मुश्किल लगती है? सम्पूर्ण पवित्रता मुश्किल है या सहज है? कभी मुश्किल, कभी सहज? सम्पूर्ण बनना ही है-ये लक्ष्य है ना। लक्ष्य तो हाइएस्ट है ना! कि लक्ष्य ही ढीला है कि-कोई बात नहीं, सब चलता है? नहीं। यह तो नहीं सोचते हो-थोड़ा-बहुत तो होता ही है? ये तो नहीं सोचते-’’थोड़ा तो चलता ही है, चला लो, किसको क्या पता पड़ता है, कोई मन्सा तो देखता ही नहीं है, कर्म में तो आते ही नहीं हैं?’’ लेकिन मन्सा के वाय-ब्रेशन्स भी छिप नहीं सकते। चलाने वाले को बापदादा अच्छी तरह से जानते हैं। ऐसे आउट नहीं करते, नहीं तो नाम भी आउट कर सकते हैं। लेकिन अभी नहीं करते। चलाने वाले स्वयं ही चलते-चलते, चलाते-चलाते त्रेता तक पहुँच जायेंगे। लेकिन लक्ष्य सभी का सम्पूर्ण पवित्रता का ही है।

सारे चक्र में देखो-सिर्फ देव आत्मायें हैं जिनका शरीर भी पवित्र है और आत्मा भी पवित्र है। और जो भी आये हैं-आत्मा पवित्र बन भी जाये लेकिन शरीर पवित्र नहीं होगा। आप आत्मायें ब्राह्मण जीवन में ऐसे पवित्र बनते हो जो शरीर भी, प्रकृति भी पवित्र बना देते हो। इसलिए शरीर भी पवित्र है तो आत्मा भी पवित्र है। लेकिन वो कौनसी आत्मायें हैं जो ‘शरीर’ और ‘आत्मा’-दोनों से पवित्र बनती हैं? उन्हों को देखा है? कहाँ हैं वो आत्मायें? आप ही हो वो आत्मायें! आप सभी हो या थोड़े हैं? पक्का है ना कि हम ही थे, हम ही बन रहे हैं। तो हाइएस्ट भी हो और होलीएस्ट भी हो। दोनों ही हो ना! कैसे बने? बहुत अलौकिक रूहानी होली मनाने से होली बने। कौनसी होली खेली है जिससे होलीएस्ट भी बने हो और हाइएस्ट भी बने हो?

सबसे अच्छे ते अच्छा श्रेष्ठ रंग कौनसा है? सबसे अविनाशी रंग है-बाप के संग का रंग। जैसा संग होता है ना, वैसा रंग लगता है। आपको किसका रंग लगा? बाप का ना! तो बाप के संग का रंग जितना पक्का लगता है उतना ही होली बन जाते हो, सम्पूर्ण पवित्र बन जाते हो। संग का रंग तो सहज है ना! संग में रहो, रंग आपेही लग जायेगा, मेहनत करने की भी आवश्यकता नहीं। संग में रहना आता है? कि डबल विदेशियों को अकेला रहना, अकेलापन महसूस करना जल्दी आता है? कभी-कभी कम्पलेन आती है ना कि मैं अपने को एलोन (अकेला) महसूस करती हूँ। क्यों अकेले रहते हो? क्यों अकेलापन महसूस करते हो? आदत है, इसलिए? ब्राह्मण आत्माए एक सेकेण्ड भी अकेले नहीं हो सकतीं। हो सकती हैं? (नहीं) होना नहीं है लेकिन हो जाते हो! बापदादा ने स्वयं अपना साथी बनाया, फिर अकेले कैसे हो सकते हो! कई बच्चे कहते हैं कि बाप को ‘कम्पेनियन’ (साथी) तो बनाया है लेकिन सदा कम्पनी (साथ) नहीं रहती। क्यों? कम्पेनियन बनाया है, इसमें तो ठीक हैं। सभी से पूछेंगे-आपका कम्पेनियन कौन है? तो बाबा ही कहेंगे ना।

बापदादा ने देखा कि जब कम्पेनियन बनाने से भी काम नहीं चलता, कभी-कभी फिर भी अकेले हो जाते हो। अभी और क्या युक्ति अपनायें? कम्पेनियन बनाया है लेकिन कम्बाइन्ड नहीं बने हो। कम्बाइन्ड-स्वरूप कभी अलग नहीं होता। कम्पेनियन से कभी-कभी फ्रेंडली क्वरल (Quarrel-झगड़ा) भी हो जाता है तो अलग हो जाते हो। कभी-कभी कोई ऐसी बात हो जाती है ना, तो बाप से अकेले बन जाते हो। तो कम्पेनियन तो बनाया है लेकिन कम्पेनियन को कम्बाइन्ड रूप में अनुभव करो। अलग हो ही नहीं सकते, किसकी ताकत नहीं जो मुझ कम्बाइन्ड रूप को अलग कर सके-ऐसा अनुभव बार-बार स्मृति में लाते-लाते स्मृतिस्वरूप बन जाओ। बार-बार चेक करो कि कम्बाइन्ड हूँ, किनारा तो नहीं कर लिया? जितना कम्बाइन्ड-रूप का अनुभव बढ़ाते जायेंगे उतना ब्राह्मण जीवन बहुत प्यारी, मनोरंजक जीवन अनुभव होगी। तो ऐसी होली मनाने आये हो ना। कि सिर्फ रंग की होली मनाकर कहेंगे कि होली हो गई? सदैव याद रखो-संग के रंग की होली से होलीएस्ट और हाइएस्ट सहज बनना है। मुश्किल नहीं, सहज। पर-मात्म-संग कभी मुश्किल का अनुभव नहीं कराता। बापदादा को भी बच्चों का मेहनत या मुश्किल अनुभव करना अच्छा नहीं लगता। मास्टर सर्वशक्तिवान वा सर्वशक्तिवान के कम्बाइन्ड-रूप और फिर मुश्किल कैसे हो सकती! जरूर कोई अलबेलापन वा आलस्य वा पुरानी पास्ट लाइफ के संस्कार इमर्ज होते हैं तब मुश्किल अनुभव होता है। जब मरजीवा बन गये तो पुराने संस्कार की भी मृत्यु हो गयी, पुराने संस्कार इमर्ज हो नहीं सकते। बिल्कुल भूल जाओ-ये पुराने जन्म के हैं, ब्राह्मण जन्म के नहीं हैं। जब पुराना जन्म समाप्त हुआ, नया जन्म धारण किया तो नया जन्म, नये संस्कार।

अगर माया पुराने संस्कार इमर्ज कराती भी है तो सोचो-अगर कोई दूसरे की चीज आपको आकर के देवे तो आप क्या करेंगे? रख देंगे? स्वीकार करेंगे? सोचेंगे ना कि ये हमारी चीज नहीं है, ये दूसरे की चीज मैं कैसे ले सकता हूँ? अगर माया पुराने जन्म के संस्कार इमर्ज करने के रूप में आती भी है तो आपकी चीज तो आई नहीं। सोचो-ये मेरी चीज नहीं है, ये पराई है। पराई चीज को संकल्प में भी अपना नहीं मान सकते हो। मान सकते हैं? सोचो-पराई चीज जरूर धोखा देगी, दु:ख देगी। सोचकर के उसी सेकेण्ड पराई चीज को छोड़ दो, फेंक दो अर्थात् बुद्धि से निकाल दो। पराई चीज को अपनी बुद्धि में रख नहीं लो। नहीं तो परेशान करते रहेंगे। सदा ये सोचो कि-ब्राह्मण जीवन में बाप ने क्या-क्या दिया, ब्राह्मण जीवन का अर्थात् मेरा निजी स्वभाव, संस्कार, वृति, दृष्टि, स्मृति क्या है? ये निजी है, वो पराई है। पराया माल अच्छा लगता है कि अपना माल अच्छा लगता है? ये रावण का माल है और ये बाप का माल है-कौनसा अच्छा लगता है? कभी भी गलती से भी संकल्प में भी नहीं लाओ-’’क्या करें, मेरा स्वभाव ऐसा है, मेरा संस्कार ऐसा है? क्या करें, संस्कार को मिटाना बहुत मुश्किल है।’’ आपका है ही नहीं। मेरा क्यों कहते हो? मेरा है ही नहीं। रावण की चीज को मेरा कहते हो! मेरा बनाते हो ना, तब ही वो संस्कार भी समझते हैं कि इसने अपना तो बना लिया, तो अब अच्छी तरह से खातिरी करो। निजी संस्कार, निजी स्वभाव इमर्ज करो तो वह स्वत: ही मर्ज हो जायेंगे। समझा, क्या करना है?

तो ऐसी होली मनाने आये हो ना। वो एक दिन कहेंगे-होली है; दूसरे दिन कहेंगे-होली हो गई। और आप क्या कहेंगे? आप कहेंगे-हम सदा ही संग के रंग की होली मना रहे हैं और होली बन गये। होली मनाते-मनाते होली बन गये। होली मना ली या मनानी है? जबसे ब्राह्मण बने हो तब से होली मना रहे हो! क्योंकि संगमयुग का समय ही सदा उत्सव का समय है। दुनिया वाले तो एकस्ट्रा खर्च करके मौज मनाते हैं। लेकिन आप सदा ही हर सेकेण्ड मौज मनाने वाले हो, हर सेकेण्ड नाचते-गाते रहते हो। सदा खुशी में नाचते हो या जब कल्चरल प्रोग्राम होता है तभी नाचते हो? सदा नाचते रहते हो ना। सदा बाप की महिमा और अपनी प्राप्तियों के गीत गाते रहो। सबको गाना आता है ना। सभी गा सकते हो, सभी नाच सकते हो। सदा नाचना-गाना मुश्किल है क्या? सहज है और सदा सहज अनुभव करते सम्पन्न बनना ही है। कभी भी ये नहीं सोचो-पता नहीं, हम सम्पन्न बनेंगे या नहीं बनेंगे। ये कमजोर संकल्प कभी आने नहीं दो। सदा यही सोचो कि अनेक बार मैं ही बनी हूँ और मुझे ही बनना ही है। अच्छा!

चारो ओर के सदा परमात्म-संग के रंग की होली मनाने वाली श्रेष्ठ आत्मायें, सृष्टि-चक्र के अन्दर सदा हाइएस्ट पार्ट बजाने वाली श्रेष्ठ आत्मायें, सर्व आत्माओं से श्रेष्ठ होलीएस्ट आत्मायें, सदा कम्बाइन्ड रहने वाली पद्मापद्म भाग्यवान आत्मायें, सदा सर्व की मुश्किल को भी सहज बनाने वाली ब्राह्मण आत्मायें, सदा नये जन्म के नये स्वभाव-संस्कार, नये उमंग-उत्साह में रहने वाली उड़ती कला की अनुभवी आत्माओं को बापदादा का याद, प्यार और नमस्ते।

दादी जानकी से मुलाकात

अच्छा चल रहा है ना। रथ को चलाने का तरीका आ गया है। दादियों को ठीक देखकर के ही खुश हो जाते हैं। शरीर के भी नाले-जफुल, आत्मा के भी नॉलेजफुल। चाहे पिछला हिसाब-किताब चुक्तू करना ही पड़ता है लेकिन नॉलेजफुल होने से सहज चुक्तू हो जाता है। तरीका आ जाता है ना। चलने का और चलाने का-दोनों तरीके आ जाते हैं। फिर भी सेवा का बल दुआओं का काम कर रहा है। यह दुआयें दवाई का काम कर रही हैं। सेवा का उमंग आता है ना-जल्दी-जल्दी तैयार हो जाए तो सेवा करें। तो वह उमंग जो आता है ना, वह उमंग सूली से कांटा कर देता है। अच्छा है, फिर भी हिम्मत अच्छी है।

(सभा से) निमित्त आत्माओं को देखकर के खुश होते हो ना। अभी अव्यक्त वर्ष में हर एक कोई न कोई कमाल करके दिखाओ। सेवा में कमाल हो रही है, वह तो होनीहै। लेकिन पर्सनल पुरूषार्थ में ऐसी कमाल दिखाओ जो देखने वाले कहें कि-हाँ, कमाल है! दूसरे के मुख से निकले कि कमाल है। सिर्फ यह नहीं कि चल तो रहे हैं, बढ़ तो रहे हैं। लेकिन कमाल क्या की? कमाल उसको कहा जाता है जो असम्भव को कोई सम्भव करके दिखाये, मुश्किल को सहज करके दिखाये। जो कोई के स्वप्न में भी नहीं हो वह बात साकार में करके दिखाये-इसको कहा जाता है कमाल। समय प्रमाण कमाल होना-वह और बात है। वह तो होनी ही है, हुई पड़ी है। लेकिन स्व के अटेन्शन से कोई ऐसी कमाल करके दिखाओ। ब्रह्मा बाप के 25 वर्ष पूरे हुए। जब कोई भी उत्सव मनाना होता है, तो जिसका मनाते हैं उसको कोई न कोई दिल-पसन्द गिफ्ट दी जाती है। ब्रह्मा बाप के दिल-पसन्द क्या है? वह तो जानते ही हो ना। जो स्वयं को भी मुश्किल लगता हो ना, वो ऐसा सहज हो जाए जो स्वयं भी आप अनुभव करो-तब कमाल है। ठीक है ना। क्या करेंगे? बाप के दिल-पसन्द करके दिखाओ। क्या-क्या दिल-पसन्द है-यह तो जानते हो ना। बाप को क्या पसन्द है, जानते हो ना। अच्छा! देखेंगे कौनसी-कौनसी गिफ्ट देते हैं? जैसे स्थूल गिफ्ट बड़े प्यार से ले आते हो ना। अच्छा है, डबल विदेशी अपना भाग्य अच्छी तरह से प्राप्त कर रहे हैं। वृद्धि कर रहे हो ना। वृद्धि करने वालों को पहले तपस्या के साथ त्याग करना ही पड़ता है। वृद्धि होती है तो खुश होते हो ना। या समझते हो-हमारे को कमी पड़ जायेगी? अच्छा है, वृद्धि अच्छी कर रहे हो। यह नहीं सोचो-हमारा कम हो रहा है। बढ़ रहा है। सारी मशीनरी सूक्ष्म वतन की ही चल रही है।

डबल विदेशी भाई-बहनों के अलग-अलग ग्रुप से अव्यक्त बापदादा की पर्सनल मुलाकात’’

ग्रुप नं. 1

स्थूल कर्म करते भी मंसा द्वारा वायबेशन्स फैलाने की सेवा करो

सभी अपने को सदा विश्व की सर्व आत्माओं के कल्याणकारी आत्मायें अनुभव करते हो? सारा दिन विश्व-कल्याण के कर्तव्य में बिजी रहते हो या दो-चार घण्टे? कितना भी स्थूल कार्य हो लेकिन स्थूल कार्य करते हुए भी मन्सा द्वारा वायब्रेशन्स फैलाने की सेवा कर सकते हो। क्योंकि जिसका जो कार्य होता है ना, वो कहाँ भी होगा, अपना कार्य कभी भी नहीं भूलेगा। जैसे-कोई बिजनेसमेन है तो स्वप्न में भी अपना बिजनेस देखेगा। तो आपका काम ही है-विश्व-कल्याण करना। कोई भी पूछे-आपका ऑक्यूपेशन क्या है? तो क्या यह कहेंगे-टाइपिस्ट हैं या इन्जीनियर हैं या बिजनेसमेन हैं। यह तो हुआ निमित्त-मात्र, लेकिन सदा स्मृति विश्व-कल्याणकारी ऑक्यूपेशन की है। इतना बड़ा कार्य मिला है जो फुर्सत ही नहीं है और बातों में जाने की। ऐसे बिजी रहते हो? मन-बुद्धि बिजी रहती है? कभी खाली रहती है? अगर सदा मन-बुद्धि से बिजी हैं तो मायाजीत हो ही गये। क्योंकि माया को भी समय चाहिए ना। आपको समय ही नहीं तो माया क्या करेगी? बिजी देखकर के आने वाला स्वत: ही वापस चला जाता है। तो मायाजीत हो गये? मन-बुद्धि को फ्री रखना माना माया का आह्वान करना।

वर्तमान समय की विशेष माया है-व्यर्थ सोचना, व्यर्थ बोलना, व्यर्थ समय गँवाना। तो यह माया कभी-कभी आ जाती है ना। तो इसका मतलब फ्री रहते हो। सबसे बड़े ते बड़े बिजनेसमेन या इन्डस्ट्रियलिस्ट आप हो। कोई का कितना भी बड़ा व्यापार हो, धन्धा हो, फैक्टरी हो लेकिन वो अगर कमाई करेगा तो कितनी करेगा? एक दिन में एक करोड़ भी कमा ले, लेकिन आपकी सारे दिन में कितनी कमाई है? (अनगिनत) तो इतने बड़े हो ना। जब कोई बिजी होता है तो और कहाँ बुद्धि जाने की फुर्सत ही नहीं होती। तो आपका मन या बुद्धि कहीं जा सकते हैं? नहीं! तो मायाजीत हो गये ना! माया आवे और उसको भगाओ-अभी वह समय गया। अभी सदा बिजी रहो। फिर कोई कम्प्लेन नहीं रहेगी। सबसे सहज साधन यह है कि बिजी रहो। इससे एक तो मायाजीत बन जायेंगे, दूसरा सदा खुशी में नाचते रहेंगे। क्योंकि प्राप्ति में खुशी होती है ना! तो और क्या चाहिए! खुशी चाहिए ना! तो बिजी रहने से कभी भी न माया आयेगी, न खुशी जायेगी।

बापदादा को बच्चों को देखकर के खुशी होती है-फास्ट जाकर के फर्स्ट नम्बर आयेंगे। ‘फर्स्ट’ एक होता है या बहुत होते हैं? फर्स्ट डिविजन में आयेंगे। हिम्मत अच्छी है॰ इसलिए एकस्ट्रा मदद भी मिल रही है। ऐसे अनुभव करते हैं ना! (गोली की स्पीड से भी तेज चल रहे हैं) आजकल तो गोली की स्पीड कुछ नहीं है। राकेट तेज चलता है। राकेट से भी तेज। सोल (आत्मा) रूप में स्थित होना अर्थात् तेज होना। फास्ट जाना ही है। सेवायें तो भिन्न-भिन्न रीति से कर ही रहे हो। लेकिन और भी थोड़ा छोटे-छोटे प्रोग्राम करके, जैसे योग-शिविर में अनुभव कराते हो, ऐसे रिट्रीट के प्रोग्राम करने चाहिए। सभी जगह अनुभव कराओ। सिर्फ सुन के नहीं जाये, अटेन्शन यह रखो-अनुभव करके जाये। अच्छा! सभी क्या याद रखेंगे? कौन हो? चलते-फिरते अपना यही ऑक्यूपेशन याद रखना कि मैं हर समय विश्व-कल्याणकारी आत्मा हूँ तो विश्व के कल्याण के निमित बनूँ। अच्छा!

ग्रुप नं. 2

शरीर भी चला लाये लेकिन खुशी नहीं जाये - यह दृढ़ प्रतिज्ञा करो

सदा अपने को पद्मापद्म भाग्यवान अनुभव करते हो? क्योंकि बाप द्वारा वर्सा मिला है। तो वर्से में कितने अविनाशी खज़ाने मिले हैं? जब खज़ाने अविनाशी हैं तो भाग्य की स्मृति भी अविनाशी चाहिए। अविनाशी का अर्थ क्या है? सदा या कभी-कभी? सदा अपने को पद्मापद्म भाग्यवान आत्मायें हैं-यह स्मृति में रखो और खज़ानों को सदा सामने इमर्ज रूप में रखो। कितने खज़ाने मिले हैं? अगर सदा खज़ानों को सामने रखेंगे तो नशा वा खुशी भी सदा रहेगी और कभी भी कम-ज्यादा नहीं रहेगी, बेहद की रहेगी। तो खज़ाने को बढ़ाओ भी और इमर्ज रूप में भी रखो। बढ़ाने का साधन क्या है? जितना बांटेंगे उतना बढ़ेगा। सदा यह सोचो कि आज के दिन खज़ाने को बढ़ाया या जितना था उतना ही है? खज़ाना जितना बढ़ेगा, तो बढ़ने की निशानी है-खुशी बढ़ेगी। तो बढ़ते जाते हैं ना। क्योंकि यह खज़ाने सदा खुशी को बढ़ाने वाले हैं। इसलिए कभी भी खुशी कम नहीं होनी चाहिए। कितना भी बड़ा विघ्न आ जाये लेकिन विघ्न खुशी को कम ना करे। किसी भी प्रकार का विघ्न खुशी को कम तो नहीं करता है ? बापदादा ने पहले भी कहा है कि शरीर चला जाये लेकिन खुशी नहीं जाये। इतनी अपने आपसे दृढ़ प्रतिज्ञा की है? तो सदा यह दृढ़ संकल्प करो कि-खुशी नहीं जायेगी। ब्राह्मण जीवन का आधार ही है ‘खुशी’। अगर खुशी नहीं तो ब्राह्मण जीवन नहीं। ब्राह्मण जीवन अर्थात् खुश रहना और दूसरों को भी खुशी बाँटना। वर्तमान समय में सभी को अविनाशी खुशी की आवश्यकता है, खुशी के भिखारी हैं। और आप दाता के बच्चे हो। दाता के बच्चों का काम है-देना। जो भी सम्बन्ध-सम्पर्क में आये-खुशी बांटते जाओ, देते जाओ। कोई खाली नहीं जाये। इतना भरपूर हो ना!

हर समय देखो कि मास्टर दाता बनकर के कुछ दे रहा हूँ या सिर्फ अपने में ही खुश हैं। जिस समय जिसको कोई भी चीज की आवश्यकता होती है और आवश्यकता के समय अगर कोई वही चीज उसको देता है, तो उसके दिल से दुआयें निकलती हैं। वो दुआयें भी आपको सहज पुरुषार्थी बनने में सहयोगी बन जायेंगी। तो आपका कर्तव्य है - दुआयें देना और दुआयें लेना। इसी में बिजी रहते हो ना! सारे विश्व को इसकी आवश्यकता है। तो कितना काम है! या समझते हो कि जहाँ रहते हैं उसी देश मे देना है? विश्व को देने वाले दाता हो। विश्व-महाराजन बनना है ना! कि स्टेट्स का राजा बनना है? तो विश्व को देंगे तभी तो विश्व का महाराजन बनेंगे ना! अपने देश में रहते विश्व को कैसे देंगे? मन्सा-सेवा करनी आती है? या व्यर्थ संकल्प मन में चलते हैं? जब व्यर्थ संकल्प मन में होंगे तो मन्सा-सेवा कर सकेंगे? तो सदा मन्सा-सेवा करते हो या कभी व्यर्थ संकल्प भी आ जाते हैं?

मन-बुद्धि को इतना बिजी रखो जो व्यर्थ संकल्प आवे ही नहीं। आवे और फिर भगाओ- तो टाइम जायेगा ना! वेस्ट थॉट (व्यर्थ संकल्प) आवे ही नहीं उसकी विधि है कि अपने मन को सदा मन्सा, वाचा और कर्मणा सेवा में बिजी रखो। हर रोज़ की मुरली साधन है मन को बिजी रखने का। हर रोज़ मुरली सुनते हो, पढ़ते हो। तो बिजी रखते हो ना। तो वेस्ट खत्म ! क्योंकि अभी से वेस्ट को खत्म करेंगे तो जब फाइनल समय आयेगा, तो पास हो सकेंगे। नहीं तो, अगर व्यर्थ संकल्प चलने का अभ्यास होगा तो समय पर पास नहीं हो सकेंगे। तो पास विद् ऑनर बनने वाले हो ना। या सिर्फ पास होने वाले हो? अच्छा है, सदा पास विद् आनर बनने का लक्ष्य सामने रखो और अभ्यास करो। अच्छा!

ग्रुप नं. 3

दिलतख्तनशीन बनने के लिये स्मृति के तिलकधारी बनो

सदा अपने को बाप के दिलतख्तनशीन आत्मायें अनुभव करते हो? ऐसा तख्त सारे कल्प में अब एक बार ही मिलता है और कोई समय नहीं मिलता। जो श्रेष्ठ बात हो और मिले भी एक ही बार-तो उस तख्त को कभी भी छोड़ना नहीं चाहिए। जो बाप के दिल तख्तनशीन होंगे, सदा होंगे-तो तख्तनशीन की निशानी क्या है? तख्त पर बैठने से क्या होता है? तख्त पर बैठने से अपने को बेफिक्र बादशाह अनुभव करेंगे। तो सदा बेफिक्र रहते हो या कभी थोड़ा-थोड़ा फिक्र आ जाता है-चाहे अपना, चाहे सेवा का, चाहे दूसरों का? तो सदा दिलतख्त पर बैठने वाली आत्मा नशे में भी रहती और नशा रहने के कारण स्वत: ही बेफिक्र रहती। क्योंकि इस तख्त में यह विशेषता है कि जब तक जो तख्तनशीन होगा वह सब बातों में बेफिक्र होगा। जैसे आजकल भी कोई-कोई स्थान को विशेष कोई न कोई नवीनता, विशेषता मिली हुई है। तो दिलतख्त की यह विशेषता है-फिक्र आ नहीं सकता। तो नीचे क्यों आते जो फिक्र हो? काम करने के लिए नीचे आना पड़ता है! दिलतख्त को यह भी वरदान मिला हुआ है कि कोई भी कार्य करते भी दिलतख्तनशीन बन सकते। फिर सदा क्यों नहीं रहते?

और कोई अट्रेक्शन (आकर्षण) है ? है नहीं लेकिन हो जाती है। कभी भी कोई भी बात सामने आये तो फौरन दिलतख्तनशीन बन जाओ तो कोई भी बात अपनी तरफ खींचेगी नहीं। बैठने की प्रैक्टिस है या कभी-कभी प्रैक्टिस भूल जाती है? तख्तनशीन बनने के लिए तिलकधारी भी बनना पड़े। तिलक कौनसा है? स्मृति का। तिलक है तो तख्तनशीन भी हैं, तिलक नहीं तो तख्त नहीं। अविनाशी तिलक लगा हुआ है? या कभी मिटता है, कभी लगता है? अविनाशी तिलक है ना! स्मृति का तिलक लगा और तख्तनशीन हो सदा स्वयं भी नशे में रहेंगे और दूसरों को भी नशे की स्मृति दिलायेंगे। तिलक लगाना मुश्किल है कि सहज है? सदा इजी है ना! ‘सदा’ शब्द में मुस्कुराते हैं। अगर बापदादा पूछे कि 21 जन्मों में कभी राज्य-अधिकारी बनो कभी प्रजा बनो, राज्य-अधिकारी नहीं बनो-मंजूर है? नहीं! तो अभी चान्स है। क्योंकि भविष्य का आधार वर्तमान पर है। अगर अभी सदा तख्तनशीन हैं तो वहाँ भी सदा राज्य-अधिकारी बनेंगे। तो ‘सदा’ शब्द को अन्डरलाईन करो। बच्चों को कभी भी बाप का वर्सा भूलता है क्या! तो यह दिलतख्त भी बाप का वर्सा है, तो वर्सा तो सदा साथ रहेगा ना! क्या याद रखेंगे? कौन हो? बेफिक्र बादशाह। बार-बार स्मृति को इमर्ज करते रहना। सदा यह नशा रहे कि हम साधारण आत्मा नहीं हैं लेकिन विशेष आत्मायें हैं। आप जैसी विशेष आत्मायें सारे विश्व में बहुत थोड़ी हैं। थोड़ों में आप हो-इसी खुशी में सदा रहो। अच्छा!

ग्रुप नं. 4

मुश्किल का कारण अपनी कमजोरी है, इसलिये मास्टर सर्वशक्तिवान बनो

सभी अपने को सहजयोगी अनुभव करते हो? जो सहज बात होती है वो सदा सहज होती है। या कभी-कभी मुश्किल होती है? योग मुश्किल है या आप मुश्किल कर देते हो? तो मुश्किल क्यों करते हो? अच्छा लगता है मुश्किल? जब अपने में कोई न कोई कमजोरी लाते हो, तो मुश्किल हो जाता है। कमजोरी मुश्किल बनायेगी। तो कमजोरी आने क्यों देते हो? बच्चे किसके हो? तो बाप कमजोर है? तो आप क्यों कमजोर हो? आप अपने को मास्टर सर्वशक्तिवान कहलाते हो या मास्टर कमजोर? मास्टर सर्व-शक्तिवान! फिर कमजोर क्यों? अगर कमजोरी आ जाती है, चाहते नहीं हो लेकिन आ जाती है-तो आने-जाने का कारण क्या है? चेकिंग ठीक नहीं है। चलते-चलते कहाँ न कहाँ किसी बात में अलबेलापन आ जाता है, तब कमजोरी आ जाती है। तो सदा अटेन्शन रखो कि कहाँ भी, कभी भी अलबेलापन नहीं हो। अलबेलापन अनेक प्रकार से आता है। सबसे रॉयल रूप अलबेलेपन का है पुरूषार्थ कर रहे हैं, हो जायेगा, समय पर जरूर करके ही दिखायेंगे। पुरूषार्थ करते हैं लेकिन समय पर आधार रखते हैं, ‘स्वयं’ पर आधार नहीं रखते तो-अलबेले हो जाते हैं। तो आप कौन हो? अलबेले हो या तीव्र पुरुषार्थी?

सदैव यह स्मृति में रहे कि हर समय एवररेडी रहना है। किसी भी समय कोई भी परिस्थिति आ जाये लेकिन हम सदा एवररेडी रहेंगे। कल भी विनाश हो जाये तो तैयार हो? सम्पन्न हुए हो? नहीं। तो एवररेडी कैसे? क्योंकि ब्राह्मण जीवन का लक्ष्य है सम्पूर्ण बनना। एवररेडी अर्थात् सम्पूर्ण। तो कितना टाइम चाहिए? तो एवररेडी तो हो ना। अगर एवररेडी होंगे तो टाइम-कान्सेस (Time-Conscious) नहीं होंगे। बाप के बन गये, तो सिवाए बाप के और कोई है क्या? तो क्या तैयार होना है? एक बाप, दूसरा न कोई-यह तो तैयारी है ना। वो तो हो ही। फिर क्यों कहते हो- एक साल चाहिए, दो साल चाहिए। जब एक ही है तो एक के तरफ मन्मनाभव हो गये ना। तो एवररेडी हो ना। कोई मेहनत नहीं।

अनेकों को याद करना मुश्किल होता है, एक को याद करना तो सहज है। जब एक बाप के तरफ बुद्धि लग गई तो बाकी क्या करना है! यही तो पुरूषार्थ है। क्या मुश्किल है! जब है ही बाप याद, तो बाप की याद में माया तो कुछ नहीं कर सकती। आ सकती है क्या माया? एवररेडी होकर के सेवा करेंगे तो सेवा में भी और सहयोग मिलेगा, सहज होती जायेगी, सफलता मिलेगी। तो सदा ये स्मृति में रखो कि-है ही एक बाप, दूसरा कुछ है ही नहीं। अगर वन बाप है तो विन जरूर है। सहज योगी हो ना। मास्टर सर्वश-क्तिवान के आगे माया की हिम्मत नहीं जो वार कर सके। और ही माया सरेन्डर होगी, वार नहीं करेगी। जब सर्वशक्तिवान बाप साथ है तो सदा ही जहाँ बाप है वहाँ विजय है ही है। कल्प-कल्प के विजयी हैं, अभी भी हैं और सदा रहेंगे। ये स्मृति है ना। कितनी बार विजयी बने हो? तो अनेक बार किया हुआ कार्य फिर से करना, उसमें क्या मुश्किल है! नई बात तो नहीं है ना। तो नशे से कहो कि हम सहज योगी नहीं होंगे तो कौन होगा! ऐसा नशा है?

सभी के मस्तक पर श्रेष्ठ भाग्य की लकीर नूंधी हुई है। क्योंकि भाग्यविधाता के बच्चे हैं। तो जिसका बाप भाग्यविधाता है, उसका कितना बड़ा भाग्य है! तो सदा अपने श्रेष्ठ भाग्य की लकीर को देख हर्षित रहते हो और सदा रहते रहना। ये भाग्य की लकीर सिर्फ एक जन्म के लिए नहीं है लेकिन अनेक जन्म ये भाग्य साथ रहेगा। भाग्य आपके साथ जायेगा ना। गारन्टी है ना। दुनिया वाले कहते हैं-हाथ खाली आये, हाथ खाली जायेंगे। लेकिन आप कहते हो- हम भाग्यविधाता के बच्चे भरकर जायेंगे, खाली नहीं जायेंगे। ये निश्चय है ना। भाग्य का अनुभव करते हो ना। सभी अनुभवी हैं। तो इसी अनुभव को सदा आगे बढ़ाते रहो। स्मृति रखना माना बढ़ाना। बापदादा हर एक बच्चे के भाग्य को देख हर्षित हो रहे हैं। क्योंकि आप ब्राह्मण आत्माओं के श्रेष्ठ भाग्य से ऊंचा भाग्य किसका है ही नहीं। अभी क्या नवीनता करेंगे? नवीनता है कि कम समय में ज्यादा सेवा कर सफलता प्राप्त होना। उसके लिये क्या करेंगे? ऐसी आत्माओं को निमित्त बनाओ जो एक के आवाज से अनेक सहज बाप के समीप आ जायें। बापदादा ने कहा ना-अभी माइक तैयार करो जिनका आवाज बुलन्द हो। अच्छा!

ग्रुप नं. 5

‘सम्पूर्ण पवित्रता’ ही ब्राह्मण जीवन की पर्सनालिटी है

संगमयुग को कौनसा विशेष वरदान मिला हुआ है? संगमयुग को विशेष वरदान है सहज प्राप्ति का। मेहनत कम और सफलता ज्यादा। इसलिए आपके योग का नाम भी है सहजयोग। जितनी प्राप्ति कर रहे हो उसके अन्तर में मेहनत क्या की! बिना मेहनत के सदाकाल के लिए सर्व प्राप्ति करने के अधिकारी बन गये। सबसे बड़े ते बड़ी प्राप्ति-बाप मिला, सब-कुछ मिला! तो बाप सहज मिला या मुश्किल मिला? घर बैठे मिला ना! कोई खर्चा किया? खर्च करने की भी मेहनत नहीं करनी पड़ती। आप लोगों ने आधा कल्प मेहनत की लेकिन मेहनत से बाप नहीं मिला। बाप को ढूंढ़ने की कोशिश की लेकिन बिना परिचय ढूंढ़ नहीं सके और बाप ने सहज ही ढूंढ़ लिया ना। चाहे कितने भी दूर चले गये लेकिन बाप ने ढूंढ़ लिया।

संगमयुग को विशेष वरदान है ही सहज प्राप्ति का। याद करना मुश्किल लगता है या सहज लगता है? तो जो सहज होता है वो स्वत: ही निरन्तर होता है। तो निरन्तर सहजयोगी हो ना। जब बाप साथ है और बाप से प्यार है, तो जिससे प्यार होता है उसका साथ छोड़ा जाता है क्या? तो साथ क्यों छोड़ते हो? तो सदा साथ रहना है। सदा साथ रहने से मायाजीत भी सदा सहज होंगे। वायदा क्या करते हो कि-कभी आपको नहीं छोड़ेंगे, कभी नहीं भूलेंगे। तो फिर क्यों छोड़ते हो? तो जो वायदा किया है उसको सदा स्मृति में रखो। क्योंकि ड्रामानुसार समय भी वरदानी मिला है। तो समय भी सहयोगी है। बापदादा आते ही हैं सब सहज करने। तो जो भी कदम उठाते हो, हर कदम में सहज का अनुभव करना-यही ब्राह्मण जीवन है। क्योंकि बाप सर्व प्राप्तियों के भण्डारे भरपूर कर देते हैं। तो जहाँ प्राप्तियों का भण्डारा भरपूर है, वहाँ कोई बात मुश्किल नहीं है। सर्व शक्तियों का भण्डार भरपूर है? जो नॉलेजफुल है उसके सर्व खज़ानों से भण्डारे फुल हैं। अगर कोई कमी है-चाहे शक्तियों में, चाहे गुणों में, किसी भी खज़ाने में कमी है तो नॉलेज की कमी है। तो बाप समान बनना है ना। तो चेक करो कि किस खज़ाने की कमी है और उसको भरते जाओ। अच्छा!

सभी ने होली मनाई कि अभी मनानी है? होली मनाना अर्थात् होली बनना। ब्राह्मण जीवन की विशेषता ही है होली अर्थात् पवित्र। पवित्रता की विशेषता से ही अभी भी महान हो और सदा ही महान रहेंगे। प्योरिटी सहज लगती है या मुश्किल लगती है? तो पवित्रता धारणा कर ली या पवित्रता धारण करने में अभी टाइम चाहिए? सब विकार चले गये? या थोड़ा अंश रह गया है? पाण्डवों को कभी क्रोध आता है? माताओं को मोह आता है? सम्पूर्ण पवित्र अर्थात् अपवित्रता का अंश-मात्र भी न हो। क्योंकि जितनी पवित्रता है उतनी ब्राह्मण जीवन की पर्सनैलिटी है। अगर पवित्रता कम तो पर्सनैलिटी कम। ये प्योरिटी की पर्सनैलिटी सेवा में भी सहज सफलता दिलायेगी। कोई भी पर्सनैलिटी का प्रभाव पड़ता है ना। तो सबसे बड़े ते बड़ी पर्सनैलिटी है प्योरिटी की। अगर एक विकार भी अंश-मात्र है तो दूसरे साथी भी उसके साथ जरूर होंगे। जैसे आप लोग दूसरों को कहते हो कि-जहाँ पवित्रता है वहाँ सुख-शान्ति है, अगर पवित्रता नहीं तो सुख-शान्ति नहीं। जैसे पवित्रता का सुख-शान्ति से गहरा सम्बन्ध है, ऐसे अपवित्रता का भी पांच विकारों से गहरा सम्बन्ध है। इसलिए कोई भी विकार का अंश-मात्र भी न रहे। इसको कहा जाता है पवित्रता। तो ऐसा ही लक्ष्य है ना। या थोड़ा-थोड़ा रह गया हो तो कोई बात नहीं? तो सदा लक्ष्य को सामने रख लक्ष्य प्रमाण लक्षण धारण करते उड़ते चलो। जब सभी कहते हो- नम्बरवन आना है; कोई टू नम्बर नहीं कहते। तो किस आधार से नम्बरवन बनेंगे? पवित्रता के आधार से ना। तो नम्बर-वन प्योर बनो। अच्छा!

बापदादा ने सभी बच्चों को विदाई के समय होली की मुबारक दी

चारों ओर के होली हंसों को होली के उत्सव की उमंग-उत्साह भरी याद; प्यार। सभी बच्चों के रूहानी होली मनाने की, खुशी के उमंग-उत्साह की संकल्पों द्वारा, पत्रों द्वारा, कार्ड द्वारा, खिलौनों द्वारा याद; प्यार मिली। रूहानी बच्चों की संगमयुग पर सदा होली रहने की होली है। फिर भी, संगम है ही सुहेज (मौज) मनाने का युग। इसलिए विशेष सदा बाप के संग रहने की, सदा सम्पूर्ण होली बनने की और सदा बीती को बीती करने वाली होली की सभी को बहुत-बहुत मुबारक हो! मुबारक हो!! मुबारक हो!!!